पहचान

माना हैं नाम अलग पर
पहचान एक ही
उस से मैं मुझ से वो है,
ढूँढोगे मुझे कभी तो
पहले उसको तुम पाओगे
उसका मुझसे मेरा उस से
ऐसा ही इक ये नाता है

वो धारा गंगाजल की
मैं मनुज के पाप सा हूँ
शुद्धि मेरी उस से है
मुक्ति मेरी उस से है

मैं रेगिस्तान की प्यास सा हूँ
वो मरू की मधुशाला
तृप्ति मेरी उस से है
मस्ती मेरी उस से है

निज मन विचार की आंधी है
वो योग सी अविचल शांति है
उस से है अर्थ मेरा
उसी से है परिभाषा

हूँ मैं व्यर्थ बिन जिसके
जिसने मुझको सामर्थ किया
है वो खोया था जो भाग मेरा
जागा है उस से भाग मेरा
उसका मुझसे मेरा उस से
ऐसा ही इक ये नाता है

Disclaimer: Image taken from the Internet.

Leave a comment